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( ७६ ) व्यवहार भेद विषय है, किन्तु फिर भी निश्चय नय द्वि प्रकारसे है जैसेकि शुद्ध निश्चय नय १ अशुद्ध निश्चय नय २। सो शुद्ध निश्चय नय निरुपाधि गुण करके अभेद विषय विषयक है जैसेकि केवल ज्ञान करके युक्त जीवको जीव मानना यह शुद्ध निश्चय एवंभूत नय है १ । सोपाधिक विषय अशुद्ध निश्चय जैसे मतिज्ञानादि करके युक्त है जीव २ ॥ इसी प्रकार व्यवहार नय भी द्वि प्रकारसे प्रतिपादित है जैसेकि-एक वस्तु विषय सद्भूत व्यवहार, भिन्न वस्तु विषय असद्भूत व्यवहार किन्तु स
भूत व्यवहार भी द्वि विधसे ही कहा गया है जैसेकि-उपचरित १। अनुपचरित २। फिर सोपाधि गुण गुणिका भेद विषय उपचरित सद्भूत व्यवहार इस प्रकारसे है जैसेकि जीवका मतिज्ञानादि गुण है ॥ अपितु निरुपाधि गुणगुणिका भेद विषय अनुपचरित सद्भूत व्यवहारका यह लक्षण है कि-जीव के चल ज्ञानयुक्त है क्योंकि निज गण जीवकी पूर्ण निर्मलता ही है तथा असद्भूत व्यवहार भी द्वि प्रकारसे ही वर्णन किया गया है जैसेकि उपचरित, अनुपचरित । फिर संश्लेषरहित व. स्तु विषय उपचरित असद्भूत व्यवहार जैसेकि देवदत्तका
है, और संश्लेषरहित वस्तु संबन्ध विषय अनुपचरित
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