Book Title: Jain Gazal Gulchaman Bahar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 348
________________ (९५) इन्द्रियें होती हैं । और तेईन्द्रिय जाति कुंथु वा पिप्पलकादि इनके शरीर, मुख, घ्राण यह तीन इन्द्रिय होती हैं । और चतुरिन्द्रिय जातिके चार इन्द्रिय होती है जैसेकि-शरीर, मुख, घ्राण, चक्षु, मक्षिकादिये चतुरिंद्रिय जीव होते हैं। और पंचिन्द्रिय जातिके पांच ही इन्द्रिय होती है जैसेकि शरीर; मुख, घ्राण, । जीहा, चक्षु, श्रोत्र यह पांच ही इन्द्रिय नारकी, देव, मनुष्य, । तिर्यंचोंके होते हैं. जैसे जलचर, स्थलचर, खेचर अर्थात् जो । संज्ञि होते हैं वे सर्व जीव पंचिंद्रियें होते हैं। अपितु मुक्तिके लिये केवल मनुष्य जाति ही कार्यसाधक है और कर्मानुसार ही । मनुष्योंका वर्णभद माना जाता है, यदुक्तमागमेकम्मुणा बनणो होइ कम्मुणा होश् खत्तियो। वइस्सो कम्मुणा हो। सुदो हवश् कम्मुणा ॥ । कि उत्तराध्यायन सूत्र अ० २५ ॥ गाथा ३३ ॥ कवि भाषा:-ब्रह्मचर्यादि व्रतोंके धारण करनेसे ब्राह्मण होता। है, और प्रजाकी न्यायसे रक्षा करनेसे क्षत्रिय वर्णयुक्त हो जाता है, व्यापारादि क्रियाओं द्वारा वैश्य होता है, सेवादि क्रियाओंके करनेसे शूद्र हो जाता है, अपितु कर्मसे ब्राह्मण १ १. सनि जीव मनवालोंका नाम हैं तथा जो गर्मसे उत्पन्न हों।

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