Book Title: Jain Gazal Gulchaman Bahar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 364
________________ ( १०९) है और सत्यके द्वारा ही पदार्थों का निर्णय ठीक हो जाता है। अ. पितु सत्य द्रव्य गुण पर्यायों करके युक्त होना चाहिये । पूर्वपट् द्रव्योंका स्वरूप वा सत्य असत्य नित्यानित्य स्यादस्ति नास्ति आदि पदार्थोंका स्वरूप लिखा गया है उनके अनुसार भाषण करे तो भाव सत्य होता है, अन्यत्र द्रव्य सत्य है, सो महात्मा भाव सत्य वा द्रव्य सत्य अर्थात् सर्वथा प्रकारे ही सत्य भाषण करे यही महात्माओंका द्वितीय महावत है ।। (३) सवाउ अदिन्नादाणा वेरमणं ॥ तृतीय महाव्रत चौर्य कर्मका तीन करणों तीन योगोंसे परित्याग करना है जैसेकि आप चोरी करे नही ( विना दीए लेना ), औरोंसे करावे नही, चौर्यकर्म करताओंका अनुमोदन भी न करे, मन करके वचन करके काया करके, क्योंकि इस महाव्रतके धारण करनेवालोंको सदैव काल शान्ति, तृष्णाका निरोध, संतोष, आत्मज्ञान निरास्रव पदार्थों गतिकी इन पदार्थों का भलिभान्तिसे बोध हो जाता है। और जो चौर्य कर्म करनेवालोंकी दशा होती है जैसेकि अंगोका छेदन वध दोभाग्य दीनदशा निर्लज्जता असंतोष परवस्तुओंको देखकर मनमें कलुषित भावोंका होना दोनों लोगोंमें दुःखोंका भोगना अविश्वासपात्र बनना

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