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मीको वृद्ध अवस्था भी शीघ्र ही घेर लेती है; मृत्युका मूल है कामी जन शीघ्र ही मृत्यु के मुखमें प्राप्त हो जाते हैं तथा कामियोंकी संतति भी (संतान) शीघ्र ही नाश हो जाती है, क्योंकि जिनके मातापिता ब्रह्मचर्य से पतित हुए गर्भाधान संस्कारमें प्रवृत्त होते है वे अपने पुत्रों के प्रायः जन्म संसारके साथ ही मृत्यु संस्कार भी कर देते हैं तथा यदि मृत्यु संस्कार न हुआ तो वे पुत्र शक्तिहीन दौर्भाग्य मुख कान्तिहीन आलस्य करके युक्त दुष्ट कर्मोंमें विशेष करके प्रवृत्तमान होते हैं । यह सर्व मैथुनकर्मके ही महात्म्य है तथा इस कर्मके द्वारा विशेष रोगोंकी प्राप्ति होती है जैसे कि राजयक्ष्मादि रोग हैं वे अतीन विषयसे ही प्रादुरभूत होते हैं और कास श्वास ज्वर नेत्रपीडा कर्णपीडा हृदयशूल निर्बलता अजीर्णता इत्यादि रोगों द्वारा इस परम पवित्र शरीर विषयी लोग नाश कर बैठते हैं । कइयोंको तो इसकी कृपासे अंग छेदनादि कर्म भी करने पड़ते हैं । पुनः यह कर्म लोग निंदनीय वध वैधका मूल है परम अधर्म है चित्तको भ्रममें करनेवाला है दर्शन चारित्ररूपि घरको ताला लगानेवाला है वैरके करने - वाला है अपमानके देनेवाला है दुर्नामके स्थापन करनेवाला है । अपितु इस कामरूपि जलसे आजपर्यन्त इन्द्र, देव, चक्रवतीं वासु