Book Title: Jain Gazal Gulchaman Bahar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 373
________________ ( ११८ ) और षष्टम रात्रीभोजन त्यागरूप व्रत है, यथा सवाल राउन्नोयणाज वेरमणं ।। सर्वथा रात्रीभोजनका त्यागरूप षष्टम व्रत है जैसेकि ___ अन्न १ पाणी २ खाधम' ३ स्वाधम ४ यह चार ही प्रका रका आहार तीनों करणों और तीनों योगोंसे परिहार करे,, क्योंकि रात्रीभोजनमें अनेक दोष दृष्टिगोचर होते हैं। जीवोंकी रक्षा वा किसी कारणसे जूं आदि यदि आहारमें भक्षण हो जाये तो जलोदरादि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। फिर जिस दिनसे रात्रीभोजन त्यागरूप व्रत ग्रहण किया जाता है, उसी दिनसे शेष आयुमेंसे अर्द्ध आयु तपमें ही लग जाती है तथा रात्रीभोजनके त्यागियोंको रोगादि दुःख भी विशेष पराभव नही करसक्ते क्योंकि रात्रीमें दिनका किया हुआ भोजन मुखपूर्वक परिणत हो जाता है और गत्रीको विशेष आलस्य भी उत्पन्न नही होता। जीवोंकी रक्षा, आत्माको शान्ति, ज्ञान ध्यानकी वृद्धि इत्यादि अ नेक लाभ रात्रीभोजनके त्यागियोंको प्राप्त होते हैं, इस लिये यह __ व्रत भी अवश्य ही आदरणीय है । इसका ही नाम षष्टम व्रत है, सो १ खानेवाले पदार्थ जैसे मिष्टान्नादि । २ आस्वादनेवाले पदार्थ जैसे चूर्णादि ।

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