Book Title: Jain Gazal Gulchaman Bahar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 359
________________ ( १०४ ) तिसे जान लिया है और श्रुतधर्म चारित्रधर्ममें जिसकी पूर्ण निष्टा है जो कुछ अईन् देवने पदार्थोंका वर्णन किया है वे सर्व यथार्थ हैं ऐसी जिसकी श्रद्धा है उसका ही नाम धर्मरुचि है १० ॥ और परमार्थको सेवन करना, फिर जो परमार्थी जन है उन्हीकी सेवा सुश्रुषा करके ज्ञान प्राप्त करना और कुदर्शनोंकी संगत वा जिन्होंने सम्यक्त्वको परित्यक्त कर दिया है उनका संसर्ग न करना यह सम्यक्त्वका श्रद्धान है अर्थात् सम्यक्त्व. का यही लक्षण है । सो सम्यग्ज्ञान सम्यग्दर्शनके होनेपर सम्यग्चारित्र अवश्य ही धारण करना चाहिये ।। द्वितीय सर्ग समाप्त ।। mammmmmmand

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