Book Title: Jain Gazal Gulchaman Bahar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 350
________________ ( ९७ ) पूर्व ज्ञान ( ईहा ) की अपेक्षा विशेष रूपसे दृढ़ करनेवाले ज्ञानको अवाय कहते हैं जैसेकि " यह दाक्षिणात्य ही है " इस प्रकारका ज्ञान होना ॥ ( ४ ) उसी पदार्थका इस योग्यतासे (दृढ़ रूपसे ) ज्ञान होना कि जिससे कालान्तरमें भी उस विपयका विस्मरण न हो उसको धारणा कहते है। अर्थात् जिसके निमित्तसे उत्तर काळमें भी “वह" ऐसा स्मरण हो सके उसको धारणा कहते हैं ॥ और मतिज्ञानसे ही चार प्रकारकी बुद्धि उत्पन्न होती है, जैसेकि उत्पत्तिया १ विणइया २ कम्मिया ३ परिणामिया ४॥ उत्पत्तिया बुद्धि उसका नाम है जो वाती कभी सुनी न हो और नाही कभी उसका अनुभव भी किया हो, परंतु प्रश्नोत्तर करते समय वह वातों शीघ्र ही उत्पन्न हो जाये और अन्य पुरुपोंको उस वार्तामें शंकाका स्थान भी प्राप्त न होवे ऐसी बुद्धिका नाम उत्पत्तिका है १। और जो निनय करनेसे बुद्धि उत्पन्न हो उसका नाम विनयिका है २ । अपितु जो कर्म करनेसे प्रतिभा उत्पन्न होवे और वह पुरुप कार्यमें कौशल्पताको शीघ्र ही प्राप्त हो जावे उसका नाम कम्किा बुद्धि है ३ । नो अवस्थाके परिवर्तनसे बुद्धिका भी परिवर्तन हो जाता है जैसे वालावस्था युवावस्था वृदावस्थाओंफा अनुक्रमतासे परिवर्तन होता है उसी प्रकार बुद्धिका भी परिवर्तन हो

Loading...

Page Navigation
1 ... 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376