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( ८५ ) और ऋजु नयके मतमें जब मन वचन कायाके योग शुभ वर्तने लगे तब ही सामायिक हूई ऐसे माना जाता है ॥ शब्द नयके मतमें जब जीवको वा अजीवको सम्यक् प्रकारसे जान लिया फिर अजीवसे ममत्व भावको दूर कर दीया तव सामायिक होती है ॥ एवंभूत नयके मतमें शुद्ध आत्माका नाम ही सामायिक है ।। यदुक्तं
आया सामाइय आया सामाश्यस्स अठे। इति वचनात् अर्थात्, आत्मा सामायिक है और आत्मा ही सामायिकका अर्थ है, सो एवंभूत नयके मतसे शुद्ध आत्मा शुद्ध उपयोगयुक्त सामायिकवाला होता है । सो इसी प्रकार जो पदार्थ हैं वे सप्त नयोंद्वारा भिन्न २ प्रकारसे सिद्ध होते हैं और
उनको उसी प्रकार माना जाये तब आत्मा सम्यक्त्वयुक्त हो , सक्ता है, क्योंक एकान्त नयके माननेसे मिथ्या ज्ञानकी प्राप्ति
हो जाती है अपितु अनेकान्त मतका और एकान्त मतका ही. और भी का ही विशेष है, जैसेकि-एकान्त नयवाले जब किहो सी पदार्थोंका वर्णन करते हैं तब-'ही'-का ही प्रयोग करते च है जैसेकि, यह पदार्थ ऐसे ही है । किन्तु अनेकान्त मत जब ॥ किसी पदार्थका वर्णन करता है तब 'भी' का ही प्रयोग