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( ७४ ) नैगमः अनेदरूपतया वस्तुजातं संगृह्णातीति संग्रहः । संग्रहेण गृहीतार्थस्य नेदरूपतया वस्तु व्यवह्रियत इति व्यवहारः । ऋजुप्रांजलं सूत्रयतीति ऋजुसूत्रः । शब्दात् व्याकरणात् प्रकृति प्रत्ययद्वारेण सिद्धः शब्दः शब्दनयः । परस्परेयादि रूढाः समनिरूढाः । शब्दभेदेऽप्यर्थभेदो नास्ति यथा शक्र इन्द्रः पुरन्दर इत्यादयः समनिरूढाः । एवं क्रियाप्रधानत्वेन भूयत इत्येवंभूतः ॥ इति नयाः ॥
भाषार्थ:-नैगम नयका एक प्रकार गमण नहीं है अपितु तीन प्रकारका विकल्प पूर्वे कहा गया है वे ही नैगम नय है १ । जो पदार्थों को अभेदरूपसे ग्रहण किया जाता है वही संग्रह नय है २ । जो अभेद रूपमें पदार्थों हैं उनको फिर भेदरूप से वर्णन करना जैसे कि गृहस्थ धर्म १ मुनिधर्म २ उसका ही नाम व्यवहार नय है ३ | जो समय २ पर्याय परिवर्तन होता है उस पर्यायको ही मुख्य रख पदार्थों का वर्णन करना उसका ही नाम
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