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(४१) ढकिएणं मोरंकंकाइएणं हयहसिएणं हत्यिगुलगुलाश्एणं रहंघणघणाश्एण सेतं कजेणं ॥ ____ भापार्थः-श्री गौतम प्रभुजी श्री भगवान्से पूछते हैं कि, हे भगवन् ! वे कौनसा है शेषवत् अनुमान प्रमाण { तव भगवान् प्रतिपादन करते हैं कि हे गौतम ! शेषक्त् अनुमान प्रमाण पंच प्रकारसे कहा गया है जैसेकि कार्य करके १ कारण करके २ गुण करके ३ अवयव करके ४ आश्रय करके ५॥ फिर गौतमजीने प्रश्न कियाकि हे भगवन् ! वे कौनसा है शेषवत् अनुमान प्रमाण जो कार्य करके जाना जाता है ? तब भगवान्ने उत्तर दिया कि हे गौतम ! जैसे शंख ( संख) शब्द करके जाना जाता है अर्थात् शंखके शब्द को सुनकर संखका ज्ञान हो जाता है कि यह शब्द शंखका हो रहा है, इसी प्रकार भेरी ताडने करके, पभ शब्द करके, मयूर ( मोर ) कंकारव करके, अश्व शब्द करके अर्थात् हिंपन करके, हस्ति गुलगुलाट करके, रथ घण घण करके, यह कार्याधीन अनुमान प्रमाण है, क्योंकि उक्त वस्तुये कार्य होने पर सिद्ध होती हैं अ. यात् कार्य होने पर उनका अनुमान प्रमाण द्वारा यथार्थ ज्ञान हो जाता है।