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( ४८ ) भाषार्थ:-विशेष दृष्ट अनुमान प्रमाणहारा तीन काल ग्रहण होते हैं अर्थात् उक्त प्रमाणद्वारा तीन ही काळकी वातोंका नि. र्णय किया जाता है जैसेकि भूत कालकी वाती १ वर्तमान कालकी २ और भविष्यत कालमें होनेवाला भाव, यह तीन कालके भाव भी अनुमान प्रमाणद्वारा सिद्ध हो जाते हैं ।।
मूल ॥ संकित्तीयकालग्गहणं । जत्तिणाई वणाई निष्फनसबसस्संवा मेईणि पुन्नाणि कुंभ सर नदि दहसरण तलागाणि पालित्ता तेणं सादिजाइ जहा सुवुठ्ठी आसीसेतं तीयकालग्गहणं ॥
भाषार्थ-( पूर्वपक्ष ) अनुमान प्रमाणके द्वाग भूतकालके पदार्थों का बोध कैसे होता है । ( उत्तरपक्ष ) जैसे उत्पन्न हुए हैं वनोंमें तृणादि, और पूर्ण प्रकारसे निष्पन्न है धान्न, फिर पृथि
वीमें भली प्रकारसे सुंदरताको प्राप्त हो रहे हैं और जलसे पूर्ण __ भरे हुए हैं कुंड, सरोवर, नदी, द्रह, पानीके निज्झरण, सो
इस प्रकारसे भरे हुए तड़ागादिको देखकर अनुमान प्रमाणसे कहा जाता है कि इस स्थानोपरि पूर्व सुदृष्टि हुईथी क्योंकि