________________
( ४७) मूल॥ सेकिंतं विसेसदिठं २से जहा नामए केश पुरिस्से बहुणं मज्केपुवं दिलु पुरिसं पञ्चन्नि जाणेजा अयं पुरिसे एवं करिसावणे ॥ ___भाषा:-श्री गौतम प्रभुजी भगवान से पृच्छा करते हैं कि-हे भगवन् ! विशेष दृष्ट अनुमान प्रमाण किस प्रकारस है ? भगवान् उत्तर देते हैं कि हे गौतम ! विशेष दृष्ट अनुमान प्रमाण इस प्रकारसे है जैसेकि-किसी पुरुषने किसी अमुक व्यक्ति को किसी अमुक सभामें बैठे हुएको देखा तो मनमें वि. चार किया कि यह पुरुष मेरे पूर्वदृष्ट है अर्थात् मैंने इसे कहीं पर देखा हुआ है, इस प्रकारसे विचार करते हुएने किसी लक्षणद्वारा निर्णय ही करलिया कि यह वही पुरुष है जिसको मैंने अमुक स्थानोपरि देखा था। इसी प्रकार मुद्राकी भी परीक्षा करली अर्थात् बहुत मुद्राओं से एक मुद्रा जो उसके पूर्व ह. ष्ट थी उसको जान लिया उसका ही नाम विशेप दृष्ट अनुमान प्रमाण है ॥ अपितु
मूल ॥ तंसमासन तिविहं गहणं नवइ तं. तोयकालग्गहणं पमुप्पणकालग्गहणं अ. णागयकालग्गदणं ॥