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(४५) मूल ॥सेकिंतं आसयणं २ अग्गि धूमेणं सलिलं बलागेणं वुठि अन्न विकारेणं कुल पुत्तसील समायारेणं । सेतं आसयणं सेतं सेसवं॥ __ भाषार्थ:-श्री गौतमजीने पुनः प्रश्न कियाकि हे भगवन् ! आश्रय अनुमान प्रमाण किस प्रकारसे वर्णन किया गया है ? भगवान् उत्तर देते है कि हे गौतम ! आश्रय अनुमान प्रमाण इस प्रकारसे कथन किया गया है कि जैसे अग्नि धूम करके जाना जाता है, जल वगलों करके निश्चय किया जाता है, दृष्टि बादलोंके विकारसे निर्णय की जाती है, कुल पुत्र शील समाचरणसे जाना जाता है, इसका नाम आश्रय अनुमान प्रमाण है और इसकेही द्वारा साध्य, सिद्ध, पक्ष, इत्यादि सिद्ध होते हैं। सो यह शेषवत् अनुमान प्रमाण पूर्ण हुआ ॥ __ अब दृष्टि साधर्म्यता का वर्णन किया जाता है
मूल॥सेकिंतं दिहिसाहम्मवं २ सुविहे पं. तं. सामान दिलुच विसेस दिडंच सेकिंतं सामा. नदिडं २ जहा एगो पुरिसो तहा वन