________________
(६५) णिय चरित्त गुणप्पमाणे परिहार विसुद्धिय चरित्त गुणप्पमाणे सुहुमसंपराय चरित्त गुणप्पमाणे अहक्खाय चरित्त गुणप्पमाणे ॥ __ भाषार्थः-(शंका) चारित्र गुण प्रमाण कितने प्रकारसे प्रतिपादन किया गया है ? (समाधान ) पंचप्रकारसे प्रतिपादन किया गया है-जैसेकि सामायिक चारित्र गुण प्रमाण । क्योंकि चारित्र उसे कहते हैं जो आचरण किया जाये सो सामायिक आत्मिक गुण है जैसेकि सम, आय, इक, संधि करनेसे होता है सामा. यिक, जिसका अर्थ है कि सर्व जीवोंसे समभाव करनेसे जो आत्माको लाभ होता है उसका ही नाम सामायिक है । इसके द्वि भेद हैं स्तोक काल मुहूर्तादि प्रमाण आयु पर्यन्त साधुवृत्ति रूप, सावद्य योगोंका त्यागरूप सामायिक चारित्र प्रमाण है। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय चारित्र गुण प्रमाण है जो कि पूर्व पर्यायको छेदन करके संयममें स्थापन करना। परिहार विशुद्धि चारित्र गुण प्रमाण उसका नाम है जो संयममें बाधा करनेवाले परिणाम हैं, उनका परित्याग करके सुंदर भावोंका धारण करना तथा नव मुनि गछसे वाहिर होकर १८ मास पर्यन्त तप करते हैं परिहार विशुद्धिके अर्थे उसका नाम "