________________
( ५१ ) मूल ।। एएसिंविवजासेणंति विहंगहणं नघइतं. तीयकालग्गहणं पप्पण कालग्गहणं अणागय कालग्गहणं सेकिंतं तीयकालग्गहणं णितएणवणाई अनिष्फणसरसंवा मेश्णी सुक्काणिय कुंड सर णदि दह तलागाणि पासित्ता तेणं साहिजइ जहा कुवुष्टिासी सेतं तोयकालग्गहणं॥
भाषार्थ:-जो पूर्व तीन कालके पदार्थोंका अनुमान प्रमा. णके द्वारा ज्ञान होना लिखा गया है उससे विपरीत भी तीन कालके पदार्थों का बोध निम्न कथनानुसार हो जाता है। जैसेकि सृणसे रहित वर्ण है, पृथ्वीमं धान्नादि भी उत्पन्न नहीं हुए हैं, और कुंड, सर, नदी, द्रह, तडागादि भी सर्व जलाशय शुष्क हुए दीखते है अर्थात् जलाशय शुक्के हुए हैं, तब अनुमान प्रमाणके द्वारा निश्चय किया जाता है कि जहापर कुदृष्टी है मुवृष्टी नहीं हैं, क्योंकि यदि सुदृष्टी होती तो यह जलाशय क्यों शुष्क होते सो इसका नाम भूतकाल अनुमान प्रमाण है ।।
मूल ॥ सेकित्तं पमुप्पन्न कालग्गहणं २ सा-.