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भाषार्थ : - ( पूर्वपक्ष: ) अनागत कालके पदार्थोंका बोधजन्य अनुमान प्रमाण किस प्रकार से वर्णन किया गया है ? ( उत्तरपक्षः) जैसेकि धूमसे दिशाओं आच्छादित हो रही हैं और रजादि करके मेदनी युक्त है अर्थात् पृथ्वीमें रज बहुत ही हो रही हैं, पुद्गल परस्पर अप्रतिबद्ध भावको प्राप्त हैं अर्थात् वर्षा के अनुकूल नही है, वायु नैरतादि कूणों में विद्यमान है और x अग्निमंडलके नक्षत्र वा व्यायवमंडल के नक्षत्रोंका योग हो रहा है, इसी प्रकार अन्य कोई प्रशस्त उत्पातको देखकर अनुमान होता कि कुदृष्टि होनेके चिन्ह दीखते हैं अर्थात् कुदृष्टि होवेगी ॥ यही अनागतकाल ग्रहण अनुमान प्रमाण है; इसीके द्वारा भविष्यत कालके पदार्थों का
× अग्निमंडलके नक्षत्रोंके निम्नलिखित नाम है ॥ कृतिका १ विशाखा २ पूर्वभाद्रपद ३ मघा ४ पुष्य ५ पूर्वाफाल्गुणी ६ भरणी ७ ॥ अथ व्यायव मंडल के नक्षत्र लिखते हैं । जैसेकि - चित्रा १ हस्त २ स्वाति ३ मृगशिर 8 पुनर्वसु १ उत्तराफाल्गुणी ६ अश्वनी ७ ॥ अपितु वारुणी मंडलके नक्षत्र यह हैं - अश्लेषा १ मूल २ पूर्वाषाड़ा ३ रेवती ४ शतभिशा १ आर्द्रा ६ उत्तराभाद्रवपद ७ ॥ अथ माहेन्द्र मंडलके निम्न हैं- ज्येष्टा १ रोहणी २ अनुराधा २ श्रवण ४ धनेष्टा ५ उतराषाड़ा ६ अभिजित ७ ॥