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बोध हो सक्ता है । सो यह विशेष दृष्ट है और यही दृष्टि साधम्य अनुमान प्रमाण है सो यह अनुमान प्रमाणका स्वरूप संपूर्ण हुआ ||
मूल || सेकिंत्तं वमे २ डुविदे पं. तं. साइम्मोवणीयए वेदम्मोवणीयए सोकंत्तं साहम्मो वणीयए तिविढे पं तं किंचिसाहम्मोवणीए पायसाहम्मोवणीए सबसाहम्मोवणीए ॥
भाषार्थ :- श्री गौतमप्रभुजी भगवान् से प्रश्न करते हैं कि हे भगवन् उपमान प्रमाण किस प्रकारसे वर्णन किया गया है ? भगवान् कहते हैं कि हे गौतम ! उपमान प्रमाण द्वि प्रकार से वर्णन किया गया है जैसेकि साधम्योंपनीत १ वैधम्र्योपनीत २ ॥ गौतमजीने पुनः पूर्वपक्ष कियाकि हे भगवन् साधम्र्योपनीत कितने प्रकारसे कथन किया गया है ? भगवान् ने फिर उत्तर दिया कि हे गौतम ! साधम्र्योपनीत अनुमान प्रमाण तीन प्रकार से कथन किया गया है जैसे कि किञ्चित् साधर्म्यापनीत अनुमान प्रमाण १ प्रायः साधर्म्यपनीत अनुमान प्रमाण २ सर्व साधम्र्योपनीत अनुमान ३ || इसी प्रकार गौतमजीने पूर्वपक्ष फिर किया ||