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( ४०) मान प्रमाण कितने प्रकारसे प्रतिपादन किया गया हैं ? तव गुरु पृछकको उत्तर देते हैं कि हे धर्मप्रिय ! अनुमान प्रमाण तीन प्रकारसे वर्णन किया गया है जैसेकि पूर्ववत् १ शेषवत् २ दृष्टिसाधम्मींवत् ३ ॥ शिष्यने पुनः प्रश्न किया कि हे भगवन् पूर्ववत्का क्या लक्षण है? तब गुरु इस प्रकारसे उत्तर देते हैं कि हे शिष्य जैसे किसी माताका पुत्र बालावस्थासे ही प्रदेशको चला गया किन्तु जुबान होकर वह बालक फिर उसी नगरमें आ गया तब उसकी माता पूर्व लक्षणों करके जोकि उसको निश्चित हो रहे है उन्हों लक्षणों करके जैसेकि जन्म समय पुत्रके शरीरमें क्षति किसी प्रकारसे हो गई हो उस करके अथवा वर्ग करके मषादि करके वा स्वस्तिकादि लक्षणों करके तथा शरीरमें पूर्व दृष्ट तिलादि करके अपने पुत्र होने का निश्चय करती है । जवकि उसका पूर्व लक्षणों करके निश्चय हो गया तब वे अपने पुत्रसे प्रेम करती है सो यह पूर्ववत् अनुमान प्रमाण है । पुनः शेषवत् इस प्रकारसे है जौसकि
मूल ॥ सेकिंतं सेसवं २ पंचविहे पं. तं. कज्जेणं कारणेणं गुणेणं अवयवेणं आसयणं से
जेणं २ संक्खसदेणं नेरितालियणं वसन्न