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अनानुपूर्वी।
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| २ ३ ५। (६) जैनागम रूपी चक्षु
२ | ५ | ३ | रहित न तो सुदेव को जा. ४ | १ | ३ | २ | ५ नते हैं न अधर्म को न गुणी
को जानते हैं न निर्गुणी को न योग्यायोग्य कार्य को न
सुख दुःखादि कारणों को । जानते हैं इसवास्ते जिनेन्द्र भगवान कथित शास्त्र श्रवण या स्वाध्याय कर अपना जन्म सफल करें ( ४ ) दान देने से लक्ष्मी प्राप्त होती है, शील से सुख सम्पत्ति मिलती है । तपश्चर्या करने से कमी का क्षय होता है और भावना भाने से - भव का नाश होता है।