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करनेवालोंकी दुर्गति होती हैं वह भी लोगो के दृष्टिगोचर ही है । इस लिये यह परम निंदनीय कर्म अवश्य ही त्यागने योग्य है ।
चतुर्थ व्यसन - वेश्यासंग है । इसके द्वारा भी जो जो प्राणी कष्टोंका अनुभव करते हैं वे भी अकथनीय ही हैं क्योंकि यह स्वयं तो मलीन होती ही है अपितु संग करनेवाले मळीनतासे अतिरिक्त शरीरके नाश करनेवाले अनेक रोगोंका भी पारितोषिक ले आते हैं । फिर वे उन पारितोषिक रूप रोगोंका आयुभर अनुभव करते रहते हैं । वेश्यागामी के सत्य शीळ तप दया धर्म विद्या आदि सर्व सुगुण नाशताको प्राप्त हो जाते हैं । फिर जो उनकी गति होती है वे महा भयाणक लोगों के सन्मुख ही है, इस लिये गृहस्थ लोग वेश्या संगका अवश्य ही परिहार करे ||
पंचम व्यसन —आहेटक कर्म है । जो निर्दय आत्मा वनवासी निरापराधि तृणों आदिसे निर्वाह करनेवाले हैं उन प्राणियों का वध करते हैं, वे महा निर्दय और महा अन्याय करनेवाले हैं, क्योंकि अनाथ प्राणियों का वध करना यह कोई शूरवीरताका लक्षण नही है । बहुतसे अज्ञात जनोंने इस कर्मको अवश्यकीय ही मान लिया है, वे पुरुष सदैवकाल अपनी आ