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( १६५ ) अर्हन् देवने चार शिक्षाबत प्रतिपादन किए हैं जिनमें प्रथम शिक्षाव्रत सामायिक है ॥ ___ अथ सामायिक प्रथम शिदाव्रत विषय ॥
जो जीवोंको अतीव पुण्योदयसे मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ है उसको सफल करनेके लिये दोनों समय सामायिक करना चाहिए ॥ २सम-आय-इक-इन की संधि करनेसे
१ नवविहे पुण्णे पं, तं. अन्नपुण्णे १ पाणपुण्णे २ वत्थपुण्णे ३ लेणपुण्णे ४ सयणपुण्णे ५ मणपुण्णे ६ वयपुण्णे ७ कायपुण्णे ८ नमोकारपुण्णे ९ ॥ ठाणाग सू० स्था० ९॥
माषार्थ--नव प्रकारसे जीव पुन्य प्रकृतिको बांधते हैं जैसे कि-अन्नके दानसे १ पानीके दानसे इसी प्रकारसे २ वस्त्रदान ३ शय्यादान ४ संस्तारकदानसे ५ । फिर शुभ मनके धारण करनेसे ६ और शुम वचनके बोलनेसे ७ शुभ कायाके धारण करनेसे ८ और सुयोग्य पुरुषोंको नमस्कार करनेसे ९। सो इन कारणोंसे जीव पुन्यरूप शुभ प्रकृतिका बंध कर लेता है।
२ सम शब्दके सकारका अकार, ठण् प्रत्ययान्त होनेसे दीर्घ हो जाता है क्योंकि जिस प्रत्ययके ---इत्संज्ञक होते है उनके आदि अच्को आ-आर् और ऐच हो जाते हैं । इसी प्रकारसे सामायिक शब्दकी भी सिद्धि है।