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( १८९) संयोग मिल जाते हैं परंतु बोधवीज ही प्राप्त होना कठिन है। इस लिये वोधवीजको अवश्य ही प्राप्त करना चाहिये । इस प्र. कारसे जो आत्मामें भाव धारण करता है उसीका नाम बोधवीज भावना है । सो यह द्वादश भावनायें आत्माको पवित्र करनेवाली हैं, कर्ममलके धोनेके लिये महान् पवित्र वारिरूप हैं, संसार रूपी समुद्र पोतके तुल्य हैं, द्वादश व्रतोंको निष्कलंक करनेवाली हैं और अतिचारोंको दूर करनेवाली हैं, सत्यरू. पके बतलानेवाली हैं, मुक्तिमार्गके लिये निश्रेणि रूप हैं । इस लिये प्राणीमात्रको इनके आश्रयभूत अवश्य ही होना चाहिये। फिर निम्नलिखित चार प्रकारकी भावनायें द्वारा लोगों से वर्ताव करना चाहिये। ____ मैत्री प्रमोद कारुण्य माध्यस्थ्यानि च सत्त्वगुणाधिक क्लिश्यमानाऽविनयेषु । तत्त्वार्थसूत्र थ० स० ११॥
इसका यह अर्थ है कि मैत्री, प्रमोद, कारुण्य, माध्यस्थ, यह चार ही भावनायें अनुक्रमतासे इस प्रकारसे करनी चाहिये जैसे कि सर्व जीवोंके साथ मैत्रीमाव, एकेन्द्रियसे पंचिंद्रिय पर्यन्त किसी भी जीवके साथ द्वेष भाव नहीं करना और यह