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दार्थ छोडने में आते हैं वह सब परिणामिक द्रव्य हैं, इस लिये उन्हें पर्याय कहते हैं ।॥ तथा बहुत से अनभिज्ञ लोगोंने पुद्गलद्रव्य के स्वरूपको न जानते हुओंने ईश्वरकृत जगत् कल्पन कर लिया है अपितु उन लोगोंकी कल्पना युक्तिवाधित ही है । जैसे कि जब परमात्मामें सृष्टिकर्तृत्व गुण है, तब परलय कर्तृत्व गुण असंभव हो जायगा, क्योंकि एक पदार्थमें पक्ष प्रतिपक्ष रूप युग पत् समूह ठहरना न्याय विरुद्ध है । जैसे कि अग्निमें उष्ण वा प्रकाश गुण सदैव काळसे हैं वैसे ही शीत वा अन्धकार यह गुण अनि सर्वथा असंभव हैं, इसी प्रकार इश्वरमें भी नित्य गुण एक ही होना चाहिये परस्पर विरुद्ध होने के कारणसे ||
यदि यह कहोगे कि जैसे पुगलकी समय २ पर्याय परिवर्त्तना के कारण से पुद्गल द्रव्य दो गुण भी रखनें समर्थ है, इसी प्रकार इश्वरमें भी दो गुण ठहर सक्ते हैं, सो यह भी कथन समीचीन नही हैं क्योंकि पुद्गल द्रव्यका जन पर्याय परिवर्तन होता है तब उसमें सादि सान्तपद कहा जाता है । फिर प्रथम पर्यायकी जो संज्ञा (नाम) है उसका नाश जो नूतन संज्ञा है उसकी उत्पत्ति हो जाती है तो क्या ईश्वरकी भी यही दशा है ? तथा जब परलय हूइ फिर आकाशका भी अभाव हो गया तब परमात्मा सर्व व्यापक रहा किम्वा न रहा । यदि रहा तब परळय