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( ३६ ) ॥ द्वितीय सर्गः ॥
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॥ अथ प्रमाण विवर्ण ॥ मूलसूत्रम् ॥ सेकिंतं जीव गुणप्पमाणे ५ तिविहे पएणते तं. नाणगुणप्पमाणे दंसणगुणप्पमाणे चरित्तगुणप्पमाणे सकिंतं नाणगुणप्यमाणे ५ चजविहे पं.तं. पञ्चक्खे अणुमाणे जवमे आगमे॥
भावार्थः-श्री गौतमप्रभुजी श्री भगवान्से प्रश्न करते हैं कि हे भगवन् वह जीव गुण प्रमाणकौनसा है ? क्योंकि प्रमाण उसे कहते हैं जिसके द्वारा वस्तुके स्वरूपको जाना जाये । तब श्री भगवान् उत्तर देते है कि हे गौतम ! जीव गुणप्रमाण तीन प्रकारसे कथन किया गया है जैसे कि-ज्ञान गुण प्रमाण १ दर्शन गुण प्रमाण २ चारित्र गुण प्रमाण ३॥ फिर श्री गौतमजीने प्रश्न किया कि हे भगवन् ज्ञान गुण प्रमाण कितने प्रकारस वर्णन किया गया है ? भगवान्ने फिर उत्तर दिया कि-हे गौतम !ज्ञान गुण प्रमाण चार प्रकारसे वर्णन किया गया है जैसे