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( ३९) केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है ॥ अवधि ज्ञानके षट्भेद हैं जैसेकि अनुग्रामिक १ (साथही रहनेवाला), अनानुग्रामिक २ (साथ न रहनेवाला), वर्तमान३ (वृद्धि होनेवाला),हायमान ४ (हीन होने. वाला), प्रतिपातिक ५(गिरनेवाला),अपतिपातिक६ (न गिरनेवाला); और मनःपर्यवज्ञानके दो भेद हैं जैसे कि-ऋजुमति १ और विपुलमति २ । केवलज्ञानका एक ही भेद है क्योंकि यह सकल प्रत्यक्ष है । इसी वास्ते इस ज्ञानवालेको सर्वज्ञ वा सर्वदशी कहते हैं । इनका पूर्ण विवर्ण श्री नंदीजी सूत्रसें देखो ॥ यह प्रत्यक्ष प्रमाणके भेद हुए अव अनुमान प्रमाणका स्वरूप लिखता हूं।
मूल ॥ सेकिंतं अणुमाणे ५ तिविहे पं. तं. पुववं सेसवं दिठि साहम्मवं सेकिंतं पुत्ववंश मायापुत्तं जहाण8 जुवाणं पुणरागयंकाई प. चभि जाणिज्जा पुवलिंगेण केणइतरक्खइयणवा वएणेणवा मसेणवा लंबणेणवा तिलएणवा सेतं पुत्वं ॥
भाषार्थ:-शिप्यने गुरुसे प्रश्न कियाकि हे भगवन् अनु