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- (३५) धारक एक चीज स्थिर है उसीसे अब भी आप गंगाधर शब्द वाच्य है. जब आपमें भी उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य यह तीन शक्ति है, तो आपको यह शक्ति सब पदार्थ, में मानने में क्या हानि है ? और पूर्वोक्त युक्तिसे आत्मा में उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य मानने पर एक भी दूषण गौतमगुरु भी नहीं दे सकते. इससे यह ही फलितार्थ हुआ की आत्मा कूटस्थ नित्य नहीं है, तब भी जो शास्त्रिजी को आग्रह है की आत्मा कूटस्थ नित्य है, उससे वह पक्ष में और भी दूषण बतलाता हूँ-- · नैकान्तवादे सुख-दुःखभोगौ
न पुण्य-पापे न च वन्ध-मोक्षौ । दुर्नीतिवादव्यसनासिनैवं ___ परैर्विलुप्तं जगदप्यशेषम् ॥ २७ ॥
जो युक्तिया मैने पदार्थकी अर्थक्रियाके बारेमें दिखलाई है, उसी ही तर्को से कूटस्थ नित्य आत्मा कभी सुख, दुःखको अनुभव में नहीं का सकता, वैसे जीवको पुण्य, पाप भी लग नहीं सकता, वह आत्मा कभी बद्ध, मुक्त नहीं होसकता, हैं, इसलिये सापेक्ष आत्मा नित्यानित्य है यह सिद्धान्त अवश्य स्वीकारना पड़ेगा. और जैनदर्शन से, नव्य विज्ञान से भी यह बात सिद्ध की गई है कि सव पदार्थ मात्र नित्यानित्य हैं तब भी, शास्त्रिजी! आपकी यह पुरा