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सम्यग्दर्शनशानचारित्राणि मोक्षमार्गः॥
सो इस सूत्रमें यह सिद्ध किया है कि सम्यग् दर्शनसे सम्यग् ज्ञान होता है, फिर सम्यग् ज्ञानसे सम्यग् चारित्र प्रगट हो जाता है, किन्तु तीनोंके एकत्व होनेपर जीव मोक्षको प्राप्त होते हैं, तथा यह तीनों ही मोसके मार्ग हैं । इससे सिद्ध हुआ कि विना दर्शनके जीव मोक्षमें नहीं जा सक्ते हैं, क्योंकि दर्शनके विना अन्य गुण भी सम्यक् प्रकारसे मादुर्भूत नहीं होते हैं। यथा
मूल सूत्रम् ॥ नादंसणिस्त नाणं नाणेण विना न दुति चरणगुणा अगुणिस्त नत्थि मोक्खो नत्थि अ. मोक्खस्स निवाणं ॥ उत्तराध्ययन सू० अ० २७ गाथा ३०॥
संस्कृत टीका-अदर्शनिनः सम्यक्तराहितस्य ज्ञानं नासि इत्यनेन सम्यक्तं विना सम्यक् ज्ञानं न स्यादित्यर्थः । ज्ञानविन
चारित्रगुणाश्चारित्रं पञ्चमहाव्रतरूपं तस्य गुणाः पिण्डविशुद्धया - दयः करण चरण सप्ततिरूपाः न भवति । अगुणिनः चार