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( ३ ) गुणैः रहितस्य मोक्षः कर्मक्षयो नास्ति अमोक्षस्य कर्मक्षयरहितस्य निर्वाणं मुक्तिसुखप्राप्तिर्नास्ति ||
भावार्थ:- उक्त सूत्रमें शृंखलाबद्ध लेख हैं जैसे कि सम्यक् दर्शन के विना सम्यग् ज्ञान नहीं, सम्यक् ज्ञान के विना सम्यक् चारित्र नहीं, सम्यक् चारित्रके विना सकल गुण नहीं, गुणों के विना मोक्ष नहीं, मोक्षके विना पूर्ण सुख नहीं अर्थात् आत्मिक आनंद नहीं ||
सो मिय बंधुओ ! सम्यक् दर्शन सम्यक् सिद्धान्तका ही नाम है, क्योंकि सिद्धान्त के जाने बिना कोई भी आत्मा आत्मिक गुणोंमें प्रवेश नहीं कर सकता; अपितु सम्यक् दर्शन अर्हन् देवने जो प्रतिपादन किया है वही जीवोंको कल्याणरूप है । सो अर्हत् देवके कथन किये हुए पदार्थको माननेसे सम्यक् दर्शन होता है, सम्यक् दर्शनको आईत मत कहो वा जैन दर्शन कहो किन्तु दोनों शब्दों का एक ही अर्थ है ||
प्रश्नः - जिन शब्द किस प्रकार बनता है, फिर जैन शब्द किस अर्थ व्यवहृत होता है ?
उत्तर:- 'जि' जये धातु को नक् प्रत्ययान्त होकर जिन शब्द वन जाता है । यथा 'जि' जये धातु जय अर्थमें व्यवहृत है तच