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उत्तर-अंतराय कर्मके क्षय हो जानेके कारणसे सिद्धात्मा भी अनंत शक्ति युक्त हैं अपितु अकृतवीर्य है क्योंकि सि. द्धात्माके सर्व कार्य सिद्ध है ॥
पुनः संसारी जीवोंका दो प्रकारका वीर्य है। जैसेकिबाल (अज्ञान) वीर्य १और पंडित वीर्य २ । बाल वीर्य उसका नाम है जो अज्ञानतापूर्वक उद्यम किया जाय । और पण्डित वीर्य उसको कहते हैं जो ज्ञानपूर्वक परिश्रम हो । सो जिस समय आत्मा अकर्मक होता है तब अकृतवीर्य हो जाता है सो सिद्ध प्रभु अकृतवीर्य हैं॥
पूर्वपक्ष:-जिस समय आत्मा सिद्ध गतिको प्राप्त होता है तब ही अकृतवीर्य हो जाता है सो इस कथनसे सिद्ध पद सादि ही सिद्ध हुआ।जब ऐसे है तब जैन मतकी मोक्ष अनादि न रही, अपितु सादि पद युक्त सिद्ध हुई ॥
उत्तरपक्षः-हे भव्य ! यह आपका कथन युक्ति वा सि. द्धान्त बाधित है क्योंकि जैन मतका नाम अनेकान्त मत है सो जब जैन मत संसारको अनादि मानता है तो भला मोक्षपद सादि युक्त कैसे मानेगा ? अर्थात् कदापि नहीं, क्योंकि संसार
अनादि अनंत है उसी ही प्रकार मोक्षपद भी अनादि अनंत हैं, __ अपितु सिद्धापेक्षा सूत्रकार ऐसे कहते हैं । यथा