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सामायिक शब्द सिद्ध होता है जिसका अर्थ यह है कि आत्माको शान्ति मार्गमें आरूढ़ करना वा जिसके करने से शान्तिकी प्राप्ति होवे उसीका नाम सामायिक है । सो इस प्रकार से भाव सामायिकको दोनों काल करे । फिर प्रात:काळ, और सन्ध्याकालमें सामायिककी पूर्ण विधिको भलि भांतिसे करता हुआ सामायिक सूत्रको पठन करके इस प्रकारसे विचार करे कि यह मेरा आत्मा ज्ञानस्वरूप है, केवल कर्मों के अंतर से ही इसकी नाना प्रकारकी पर्याय हो रही है और अनादि काल के कम के संगसे इस प्राणीने अनंत जन्म मरण किये हैं । फिर पुनः दुःखरूपि दावानलमें इस प्राणीने परम कष्टोको सहन किया है, और तृष्णाके वशमें होता हुआ अतृप्त ही मृत्युको माप्त हो जाता है । सो ऐसे परम दुःखरूप संसार चक्र से विमुक्त होनेका मार्ग केवल सम्यग् ज्ञान सम्यग् दर्शन सम्यग् चारित्र ही है। सो जब प्राणी आस्रवके मार्गों को बंध करता है और आत्माको अपने वशमें कर लेता है, तब ही कर्मोंके बंधनों से विमुक्त हो जाता है । सो इस प्रकारके सद् विचारोंके द्वारा सामायिक परिपूर्ण करे । अपितु सामायिक रूप व्रत दो घटिका दोनों समय अवश्य ही करना चाहिये और इस व्रत के पांचों अतिचारोंको वर्जना चाहिये, जैसे कि
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