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हिंसाकारी पदार्थों का दान करना जैसे- शस्त्रदान, अग्निदान, और ऊखल मूसलदान इत्यादि दानोंसे हिंसा की प्रवृत्ति होती है, सुकर्मकी अरुचि हो जाती है । और चतुर्थ कर्म अन्य आत्माओं को पाप कर्म में नियुक्त करना, सो यह कर्म कदापि आसेवन न करने चाहिए। फिर इस तृतीय गुणव्रतकी रक्षा के लिए पांच अतिचारोंको भी छोड़ना चाहिए जो निम्न प्रकार से हैं |
कंदप्पे १ कुकुर २ मोहरिए ३ संजुत्ताहि गरणे ४ नवजोग परिभोग अरि ५ ||
भाषार्थ — कामजन्य वार्त्ताओंका करना १ और कुचेष्टा करना तथा सॉग होरी आदिमें उपहास्यजन्य कार्य करने २ असंबद्ध वचन भाषण करने तथा धर्मयुक्त वचन बोलने ३ प्रमाणसे अधिक उपकरण वा शस्त्रादिका संचय करना ४ जो वस्तु एक वार आसेवन करनेमें आवे अथवा जो वस्तु पुनः २ ग्रहण करनेमें आवे उनका प्रमाणसे अधिक संचय करना अथवा प्रमाणयुक्त वस्तुमें अत्यन्त मूच्छित हो जाना। यह पांच
अतिचार छोड़ने चाहिए, क्योंकि इन दोषोंके द्वारा व्रत 'कित हो जाते हैं और निर्जराका मार्ग ही बंध हो जाता सो विना निर्जराके मोक्ष नहीं अपितु मुक्तिके लिए श्री