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( १७५ ) ना ही नहीं किन्तु श्रद्धायुक्त जीव मनोवांछित पदार्थोंको भी प्राप्त कर लेता है और देव गुरु धर्मका आराधिक बन जाता है।
७ सुदक्खिणो-सुदक्ष होवे-अर्थात् बुद्धिशील ही जीव सत्य असत्यके निर्णयमें समर्थ होता है और पदार्थोंका पूर्ण माता हो जाता है, अपितु बुद्धिसंपन्न ही जीव मिथ्यात्वके बंधनसे भी मुक्त हो जाता है । बुद्धिद्वारा अनेक वस्तुओंके स्वरूपको ज्ञात करके अनेक जीवोंको धर्म पथमें स्थापन करनेमें समर्थ हो जाता है, अपितु अपनी प्रतिभा द्वारा यशको भी प्राप्त होता है ॥
८ लज्जाल्लूओ-लज्जायुक्त होना-वृद्धोंकी वा माता पिता गुरु आदिकी लज्जा करना, उनके सन्मुख उपहास्य युक्त वचन न बोलने चाहिये तथा उनके सन्मुख सदैव काल वि. नयमें ही रहना चाहिये तथा पाप कर्म करते समय लज्जायुक्त होना चाहिये अर्थात् अपने कुल धर्मको विचारके पाप कर्म न करने चाहिये।
९ दयाल्लू-दयायुक्त होना-अर्थात् करुणायुक्त होना, जो जीव दुःखोंसे पीड़ित हैं और सदैवकाल क्लेषमें ही आयु व्यतीत करते हैं वा अनाथ है वा रोगी है उनोपरि दया भाव प्रगट