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(१७३ ) योग्यताको प्राप्त हो जाता है, और यशको धारण करता है, तथा. गुणों के महत्वतासे जैसे चंद्र सूर्य राहुसे विमुक्त होकर
मुंदरताको प्राप्त हो जाते हैं इसी प्रकार गुणोंके धारक जीव ___ पापोंसे छूट कर परमानंदको प्राप्त होते हैं । पुनः गुण ही सर्वको प्रिय होते हैं, गुणोंका ही आचरण करना लोग सीखते हैं,
और गुणोंका विवर्ण निम्न प्रकारसे है, जैसेकि____ १ अक्खुद्दो-सदैव काल अक्षुद्र वृत्तियुक्त होना चाहिये क्योंकि क्षुद्र वृत्ति सर्व गुणोंका नाश कर देती है और क्षुद्र वृत्ति वाले के चित्तको शान्ति नही आती, न वे ऋजुताको ही माप्त हो सक्ता है, न किसीके श्रेष्ठ गुणोंको भी अवलोकन करके उनके चित्तको शान्ति रह सक्ति है, तथा सदा ही क्षुद्र वृत्तिवाला अकार्य करनेमें उद्यत रहता है, अपितु निर्लज्जताको ग्रहण कर लेता है, इस लिये अक्षुद्र वत्तियुक्त सदैवकाल होना चाहिये ।
२ रूववं-मित्रवरो ! रूपवान् होना किसी औषधीके द्वारा नही बन सक्ता तथा किसी मंत्रविद्यासे नहीं हो सक्ता, केवल सदाचार ही युक्त जीव रूपवान् कहा जाता है । इस लिये सदा. चार ब्रह्मचर्यादिको अवश्य ही धारण करना चाहिये जिसके द्वारा सर्व प्रकारकी शक्तिये उत्पन्न हो और सदैव काल चित्त प्रसन्नतामें रहे, लोगोंमें विश्वासनीय बन जाये, मन प्रफुल्लित रहे।।