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( १६२) १० विसवणिज्जे-विषकी विक्रियता करनी क्योंकि यह कृत्य महा कर्मों के वंधका स्थान है और आशीर्वादका तो यह प्रायः नाश ही करनेवाला है।
११ जत्तपीलणियाकम्मे-यंत्र पीड़न कर्म जैसे कि कोल्हु ईख पीड़नादि कर्म है।
१२ निलंच्छणियाकम्मे-पशुओंको नपुंसक करना वा अवयवोंका छेदन भेदन करना ।।
१३ दवग्गिदावणियाकम्मे-चनको अग्नि लगाना तथा द्वेषके कारण अन्य स्थानोंको भी अग्निद्वारा दाह करना इत्यादि कृत्य सर्व उक्त कर्ममें ही गर्भित हैं ॥
१४ सर दह तलाव सोसणियाकम्मे-जलाशयोंके जलको शोषित करना, इस कर्मसे जो जीव जलके आश्रयभूत हैं वा जो जीव जलसे निर्वाह करते हैं उन सबोंको दुःख पहोंचता है और निर्दयता बढ़ती है ॥
१५ असइजणपोसणियाकम्मे-हिंसक जीवोंकी पालना करना हिंसाके लिये जैसेकि-मार्जारका पोषण करना मूषकों उंदर ) के लिये, श्वानोंकी प्रतिपालना करना जीववध के लिए और हिंसक जीवोंसे व्यापार करना वह भी इसी कर्ममें गर्भित ने ह, सो यह कमे गृहस्थोंको अवश्य ही त्याज्य हैं । जो आयकर्म ।