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वा स्थापनमृषा ( धरोड मारना) कूट शाक्षी तथा व्यापारमें स्थूल असत्य और अन्य २ कारणोंमें जिसके भाषण करने से प्रतीतका नाश होवे, राज्यसे दंडकी प्राप्ति होवे, और आत्मा पापसे कलंकित हो जाय इत्यादि कारणोंसे असत्यभाषी न होवे, अपितु यह ना समज लिजीये स्थूळ ही मृषावादका परित्याग है किन्तु सूक्ष्मकी आज्ञा है । मित्रवरो ! सूक्ष्मकी आज्ञा नहीं है किन्तु दोष न लग जानेपर स्थूल शब्द ग्रहण किया गया है अर्थात् व्रतमें दोष न लगे । अपितु असत्य सर्वथा ही त्यागनीय है और जीवको सदैव काल दुःखित रखनेवाला है, संसारचक्रमें परिवर्तन करानेवाला सुकर्मीका नाशक है, किन्तु सत्य व्रत ही आत्माकी रक्षा करनेवाला है । सो इस व्रतकी रक्षार्थे भी पांच ही अतिचारों वर्जे, जैसे कि
सहस्सा जक्खाऐ रहस्सा भक्खाणे सदारमंतनेय मोसोवएसो कूड लेद करणे ॥
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अर्थः- :- अकस्मात् विना उपयोग भाषण करना १ । तथा गुप्त वार्ताओं को प्रगट करना अर्थात जिनके प्रगट करनेसे किसी आत्माको दुःख पहुंचता हो अथवा कामकथादि २ । अपने घरकी वातें वा स्त्रखीकी बातें प्रगट करना ३ ।