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(१५२) भाषार्थ:--इस व्रतकी रक्षा अर्थे निम्न लिखित अतिचार अवश्य ही वर्जे, जैसेकि-चोरीकी वस्तु (माल) लेनी क्योंकि इस कर्मके द्वारा जो लोग फल भोगते हैं वह लोगोंके दृष्टिगोंचर ही हैं ?।और चोरोंकी रक्षा वा सहायता करना २ | राज्य विरुद्ध कार्य करने क्योंकि यह कार्य परम भयाणक दशा दि.
खलानेवाला है और तृतीय व्रतको कलंकित करनेवाला है ३ । फिर कूट तोल कूट ही माप करना (घट देना, वृद्धि करके लेना) ४ । और शुद्ध वस्तुओंमें अशुद्ध वस्तु एकत्र करके विक्रय करना क्योंकि यह कर्म यश और सत्यका दोनोंका ही घातक है। इस लिये पांचो अतिचारोंको परित्याग करके तृतीय व्रत शुद्ध धारण करे ॥
चतुर्थ स्वदार संतोष व्रत ॥ __मित्रवरो! कामको वशी करना और इन्द्रियोंको अपने
वशमें करना यही परम धर्म है जैसे इंधनसे अग्नि दृप्तिको प्राप्त ___ नही होती केवळ पाणा द्वारा ही उपशमताको प्राप्त हो जाती
है, इसी प्रकार यह काम अग्नि संतोष द्वारा ही उपशम हो सक्ती * अन्य प्रकारसे नही, क्योंकि यह ब्रह्मचर्य व्रत आत्मशक्ति,
• अक्षय सुख, शरीरकी निरोगता, उत्साह, हर्ष, चित्तकी