________________
( १५७ )
उढ दिसि पमाणातिक्कमे अहो दिसि प्पमा इक्कमे तिरिय दिसि पमाणाइक्कमे खेत बुढि सांतरा ।
भाषार्थ:- उर्ध्वं दिशिका प्रमाण अतिक्रम करना ९ अधो दिशिका प्रमाण अतिक्रम करना २ तिर्यग् दिशिका प्रमाण अतिक्रम करना ३ क्षेत्रकी वृद्धि करना जैसेकेि कल्पना करो कि किसी गृहस्थने चारों ओर शत ( सौ २ ) योजन प्रमाण क्षेत्र रक्खा हुआ है । फिर ऐसे न करे कि पूर्व की ओर १५० योजन प्रमाण कर लूं और दक्षिणकी ओर ५० योजन ही रहने दुं क्योंकि दक्षिणमें मुजे काम नही पड़ता पूर्वमें अधिक काम रहता है; यह भी अतिचार है ४ । और पंचम अतिचार यह है कि जैसेकि प्रमाणयुक्त भूमिमें संदेह उत्पन्न हो गया कि स्यात् में इतना क्षेत्र प्रमाण युक्त आ गया हूं सो संशय में ही आगे गमण करना यही पांचमा अतिचार है अपितु पांचो ही अतिचारोंको वर्जके प्रथम गुणत्रत शुद्ध ग्रहण करना चाहिये ॥
जोग परिनोग परिमाणे ।
जो वस्तु एक वार भोगनेमें आवे तथा जो वस्तु वारम्वार