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बद्धका आहार २ अपक्क आहार ३ दुःपक आहार ४ तुच्छोपधिका आहार ५ ॥ इन पांच ही अतिचारोंको वर्नक फिर १५ कर्मादानको भी परित्याग करे क्योंकि पंचदश कर्म ऐसे हैं जिनके करनेसे महा काँका बंध होता है । सो गृहस्थोंको जानने योग्य है अपितु ग्रहण करने योग्य नहीं है, जैसे कि
१ अङ्गारकम्मे-कौलादिका व्यापार ।।
२ वणकम्मे-चन कटवाना क्योंकि यह कर्म महा निर्दयताका है।
३ साडीकम्मे-शकट ( गाड़े) करवाके वेचने । . ४ भाडीकम्मे-पशुओंको भाडेपर देना क्योंकि इस कर्म करनेवालोंको पशुओंपर दया नहीं रहती।
५ फोड़ीकम्मे-पृथ्वी आदिका स्फोटक कर्म जैसे कि शिलादि तोड़ना वा पर्वत आदिको।
६ दत्तवणिज्जे-हस्ती आदिके दांत्तोंका वणिज करना।
७ लख्खवणिज्जे-लाखका वणिज तथा मजीठाका व्यापार करना ।।
८ रसबाणिज्जे-रसोंका वनज करना जैसेकि घृत, नेल, गुड़, मदिरादि ।
. ९ केसवाणिज्जे-केशोंका वनज करना तथा केश शन्दके 5 अंतरगत ही मनुष्य विक्रियता सिद्ध होती है।