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नही होती । अनेक राजे महाराजे चक्रवर्ती आदि भी इस तृष्णा 1 रूपी नदी से पार न हुए और किसी के साथ भी यह लक्ष्मी न गइ । यदि यों कहा जाय तो अत्युक्ति न होगा कि तृष्णाके वंशसे ही प्राणी सर्व प्रकारसे और सर्व ओरसे दुःखोंका अनुभव करते हैं । इस लिये तृष्णा रूपी नदीसे पार होनेके लिये संतोष रूपी सेतु (शेतुपुळ ) बांधना चाहिये अर्थात् इच्छाका परिमाण होना चाहिये । जब परिमाण किया गया तब ही पंचम अनुव्रत सिद्ध हो गया । इसी वास्ते श्री सर्वज्ञ प्रभुने दुःखोंसे छुटने के वास्ते आत्माको सदैवकाळ आनंद रहेनेके वास्ते पंचम अनुव्रत इच्छा परिमाण प्रतिपादन किया है, जिसका अर्थ है कि इच्छाका परिमाण करे, आगे वृद्धि न करे | और इस व्रत के भी पांच ही अतिचार है, जैसेकि -
खेत्त वत्थु पमाणातिक्कम्मे दिए सुवएण प्पमाणातिकम्मे डुप्पय चउप्पय प्पमाणातिकम्मे धरण धारण पमाणातिकम्मे कुविय धात प्पमाणातिक्कम्मे ||
भाषार्थ :- क्षेत्र, वस्तु ( घर हाट ) के परिमाणको अति