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(१४४ ) जगत्में निंदनीक हैं उनमें प्रवृत्ति नही करनेवाला, और अपने लाभके अनुसार व्यय करनेवाला तथा धनके अनुसार वेप रखनेवाला जो निरन्तर ही धर्मोपदेश श्रवण करनेवाला है, फिर अजीणेमें भोजनका त्यागी समयानुकूल आधार करनेवाला है, अपितु किसीकी हानि न करना ऐसी रीतिसे धर्म अर्थ काम मोक्षको सेवन करता है और यथायोग्य अतिथियों और दीनोंकी प्रतिपत्ति करनेवाला है, फिर सदैव काल आग्रहरहित, गुणोंका पक्षपाती, जो देशके विरुद्ध काम नहीं करता, सव कामोंमें अपने बलाबलके जानकरके काम करनेवाला है, तथा जो महात्मा पंच महाव्रतोंको पालते हैं, और जो ज्ञानकी वृद्धिमें सदैवकाल कटिबद्ध है, ऐसे महात्माओंकी भक्ति वा पोषणे योग्यका पोषण करनेवाला, दीर्घदर्शी, विशेषज्ञ, कृतज्ञ, लोकवल्लभ, लज्जालु, दयालु, सौम्य, परोपकार करने में समर्थ, काम क्रोध लोभ मद हर्ष मान इन पट अंतरंग वैरियोंके त्याग करनेमें तत्पर, और पांच इन्द्रियोंके वश करनेवाला, इस प्रकारकी वृत्तिवाला पुरुष गृहस्थ धर्मके धारणके योग्य होता है । और फिर सम्य
क्त्वयुक्त गृहस्थ प्रथम ही सप्त व्यसनोंका परित्याग करे क्योंकि ___ यह सात ही व्यसन दोनों लोगों में जीवोंको दुःखोंसे पीड़ित कर
.. हैं और इनके वशमें पड़ा हुआ प्राणी अपने अमूल्य