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तक नहीं पहुंचेगा, उसी तरह धर्म हीन मनुष्य भी संसार सागर में इधर उधर मारा मारा फिरेगा और कभी अपने ऊदृष्ट स्थान तक न पहुचेगा ।
(४) केवल एक ही विश्वव्यापी धर्म है और वह परमात्मा की भक्ति है ।
(५) आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना हमारा सबसे पहिला और श्रावश्यक कर्तव्य है । (६) धर्म की नाप तो प्रेम से दया से और सत्य से होती है |
(७) मैंने जीवन का एक सिद्धान्त निश्चित किया है । वह सिद्धान्त यह है कि किसी मनुष्य का चाहे वह कितनाही महान