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( १३५ ) योनिके कर्म बांधते हैं । और चार ही कारणोंसे जीव देव आयुको बांधते हैं जैसेकि-सरांग संयम पाळण करना अर्थात् साधु वृत्ति राग सहित पाळण करना १ श्रावकटत्ति पाळनेसे १ और अज्ञान कष्ट सहन करनेसे ३ अकाम निर्जरासे अर्थात् जिस वस्तुकी इच्छा है वह मिलती नहीं है और वासना नष्ट मी नहीं हुई उस कारणसे भी आत्मा देव आयुको बांध लेते हैं, अपितु मृत्यु समय जेकर शुभ परिणाम हो जाये तो ४ ॥ नाम कर्म भी जीव चार ही कारणोंसे बांधते हैं, जैसेकि-कायाको ऋजुतामें रखना ? भावोंको भी ऋजु करना २ भापा भी ऋजु ही उच्चारण करनी ३ और मनमें कोई भी विपवाद न करना ४, इन कारणोंसे जीव शुभ नाम कर्मको वांधते हैं ॥ और यह धार ही वक्र करनेसे जीव अशुभ नाम कर्मको बांधते हैं और अष्ट कारणोंसे जीव उच्च गोत्र कर्मको बांधते हैं, जैमोकि-जातिका पद न करनेसे १ कुकका मद न करनेसे २ वलका मह न करनेसे ३ रूपका मद न करनेसे ४ तपका मद न करनेसे ५ साभका मद न करनेसे ६ श्रुतका मद न करनेसे ७ ऐश्वर्या पद न करनेसे ८ और आठ ही प्रकारके मद करनेसे जीव नीच गोत्रके कमाको बांधते हैं । और पांच ही प्रकारसे जीव अंतराय कर्माको रांधने हैं, जैसे कि-दानवी अंतरायसे ? लाभान्तरायमे