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(१३४ ) ___ और जिसने हिंसा की, जविको दुःखित किया कभी भी
परोपकार नहीं किया वह जीव दुःखरूप वेदनीय कर्म बांधते हैं और दुःखरूप ही उसके फल भोगते हैं ।
और क्रोध मान माया लोभ तथा सम्यक्त्व मोहनी मिश्रमोहनी मिथ्यात्वमोहनी इनके द्वारा जीव मोहनी कर्मको बांधते हैं जिस करके जीव मोहमें ही लगे रहते हैं । प्रायः कोई २ धर्मकी बातको भी सुनना नही चाहते हैं, संसारके ही कामों में लगे रहते हैं तथा क्रोधादिमें ही लगे रहते हैं, और आयुर्कमकी प्रकृतियें चार गतियोंकी चार २ कारणों से ही जीव बांधते हैं, जैसेकि नरक गतिकी आयु जीव चार कारणोंसे बांधते हैंयथा महा आरंभ करने ( हिंसादि कर्म करनेसे ) से १ और महा परिग्रह (धनकी लालसा ) के कारणसे २ पंचिंद्रिय जीवोंके वध करनेसे अर्थात् शिकारादि कर्म ३ और मांसभक्षणसे ४॥ और चार ही कारणोंसे जीव तिर्यग् योनिके कर्मोंको बांधते हैं जैसेकि माया करने (छल) से १ मायामें माया करना २ असत्य भाषण करना ३ कूट तोला मापा करना
अर्थात् कूड़ तोळना कूड़ ही मापना ४ || और चार ही कार। णोंसे जीव मनुष्य योनिके कर्म बांधते हैं, जैसेकि प्रकृतिसे ही
भद्र होना १ प्रकृतिसे ही विनयवान होना २ दयायुक्त होना ३ मत्सरता वा ईष्या न करना ४ इन्ही कारणोंसे जीव मनुष्य