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( १३८ ) सादि सान्त है अथवा अनादि सान्त है तथा सादि अनंत हैं वा अनादि अनंत है ? श्री भगवान् उत्तर देते है कि हे गौतम.! कतिपय जीवोंके साथ कर्मोंका उपचय सादि सांत भी है और कतिपय जीवोंके साथ अनादि सान्त भी है और कतिपय जीवोंके साथ काँका उपचय अनादि अनंत भी है किन्तु जीवोंके साथ काँका उपचय सादि अनंत नहीं होता है। तब गौतमजी पूर्वपक्ष करते हैं कि 'हे भगवन् ! यह वार्ता किस प्रकारले सिद्ध है ? श्री भगवान् उदाहरण देकर उक्त कथनको स्पष्टतया सिद्ध करते है कि हे गौतम ! इर्यावही क्रियाका बंध सादि सान्त है उपशम मोहमें वा क्षीण मोहनी कर्ममें ही इ. सका बंध है ॥ __और भव्य जीव अपेक्षा *काँका उपचय अनादि सान्त है अपितु अभव्य जीव अपेक्षा कर्मोंका उपचय अनादि अनंत
* श्री पणवन्नाजी सूत्रमें अष्ट कर्मोंकी प्रकृतिये १४८ लिखी हैं जैसेकि-ज्ञानावर्णीकी ६ दर्शनावाँकी ९ वेदनीकी २ मोहनीकी २८ आयुकर्मकी ४ नामकर्मकी ९३ गोत्रकी २ अंतराय कर्मकी ५॥ और इनका बंध उदय" उदीरणा सत्ता इत्यादिका - रूप उक्त सूत्रमें वा श्री भगवती इत्यादि सूत्रोंसे ही देख लेना ।।