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(१२४ ) तृतीय भावना-नारीके रूपको भी अवलोकन न करे तथा अंगनाके हास्य लावण्यरूप यौवन कटाक्ष नेत्रोंसे देखना इत्यादि चेष्टाओंसे देखनेसे मन विकृतियुक्त हो जाता है, इसलिये मुनि योषिताके रूपको अवलोकन न करे ।।
चतुर्थ भावना-पूर्वकृत क्रीडाओंकी भी स्मृति न करे क्योंकि पूर्वकृत काय क्रीडाओंके स्मृति करनसे मन आकुल व्याकुलता पर हो जाता है, क्योंकि पुनः २ स्मृतिका यही फल होता कि उसकी दृत्ति उसके वशमें नहीं रहती ।। ___ पंचम भावना-ब्रह्मचारी स्निग्ध आहार तथा कामजन्य पदार्थों को कदापि भी आसेवन न करे, जैसे बलयुक्त औषघियें मद्यको उत्पन्न करनेवाली औषधियें, क्योंकि इनके आसेवनसे विना तप ब्रह्मचर्य से पतित होनेका भय है, मनका विभ्रम हो जाना स्वाभाविक है । इसलिये ब्रह्मचर्यकी रक्षा वास्ते स्निग्ध भोजनका परित्याग करे और पांच ही भावनायें युक्त इस पवित्र महावतको आयुपर्यन्त धारण करे ॥
पंचम महाव्रतकी पंच नावनायें ॥
प्रथम भावना-श्रोत्रंद्रियको वशमें करे अर्थात् मनोहर शब्दोंको सुनकर राग, दुष्ट शब्दोंको श्रवण करके द्वेष, यह काम