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मुत्ती वे मद्दवे लाघवे सच्चे संजमे तबे चियाए बंनचेरवासे | ठाणांग सूत्र स्थान १० ॥
अर्थ:-सब अर्थोंको सिद्ध करनेवाली आत्माको सदैव काल ही उज्ज्वलता देनेवाली अंतरंग क्रोधादि शत्रुओंका पराजय करनेवाली ऐसी परम पवित्र क्षमा मुनि धारण करे १|| फिर संसारबंधन से विमोचनता देनेवाली कष्टों से पृथक् ही रखनेवाली निराश्रय वृत्तिको पुष्ट करनेवाली निर्ममत्वता महात्मा ग्रहण करे २ ॥ और सदा ही कुटिल भावको त्याग कर ऋजुभावी होवे, क्योंकि माया ( छल ) सर्व पदार्थों का नाश करती है ३ || फिर सर्व जीवों के साथ सकोमळ भाव रक्खे अर्थात् अहंकार न करे परं मानसे विनयादि सुंदर नियमों का नाश हो जाता है ४ || साथ ही लघुभूत होकर विचरे अर्थात् किसी पदार्थके ममत्वके बंधन में न फंसे । जैसे वायु लघु होकर सर्वत्र विचरता है ऐसे मुनि परोपकार करसा हुआ विचरे ५ || पुनः सत्यव्रतको दृढतासे धारण करे अ. र्थात् पूर्ण सत्यवादी होवे ६ || संयम वृत्तिको निर्दोषता से पालण करे | यदि किसी प्रकार से परीषह पीड़ित करे तो भी संयमवृत्तिको कलंकित न करे ७ || और तपके द्वारा आत्माको निर्मल करे ८|| ज्ञानयुक्त होकर साधुओंको अन्नपाणीआदि ला