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कदापि भी न करे क्योंकि शब्दों का इंद्रियमें प्रविष्ट होने का धर्म है | यदि रागद्वेष किया गया तो अवश्य ही कर्मोंका बंधन हो जायगा, इसलिये शब्दों को सुनकर शान्ति भाव रक्खे ||
द्वितीय भावना - मनोहर वा भयाणक रूपों को भी देखकर रागद्वेष न करे अर्थात् चक्षुरिन्द्रिय वशमें करे ||
तृतीय भावना - सुगंध - दुर्गंध के भी स्पर्शमान होने पर रागद्वेष न करे अपितु घ्राणेन्द्रिय वशमें करे ||
चतुर्थ भावना - मधुर भोजन वा तिक्त रसादियुक्त भोजनके मिलनेपर रसेंद्रियको वशमें करे अर्थात् सुंदर रसके पिलनेसे राग कटुक आदि मिलने पर द्वेष मुनि न करे |
पंचम भावना - स्पर्श वा दुःस्पर्श के होनेसे भी रागद्वेष न करे अर्थात् स्पर्शेन्द्रिय वशमें करे ||
सो यह पंचवीस भावनाओं करके पंच महाव्रतोंको धारण करता हुआ दश प्रकारके मुनिधर्मको ग्रहण करे || यथादसविहे समय धम्मे पं तं खंत्ती
* पंचवीस भावनाओंका पूर्ण स्वरूप श्री आचाराह सूत्र श्री समवायाङ्ग सूत्र वा श्री प्रश्न व्याकरण सूत्रसे देख लेना ॥