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और किस तरह दी ? क्या हाथ पैर वगैरह इन्द्रियोंसे कुम्हार बढ़ईकी तरह बनाया या अपनी जवानसे केवल “ वन जाओ " वगैरह कोई शब्द कह दिया जिससे सब चीजे बन गई । पहाड भी बन गये, जानवर भी बन गये । यदि हाथ पैर वगैरहसे बनें, तो ईश्वर हाथ पैर वगैरह वाला साकार ठहरा और इतने बड़े ब्रह्माडके बनानेमे उसे कुछ वर्ष जरूर लगे होंगे । कारण कि हाथ पैर वगैरहकी शक्ति परिमित है । यदि किसी वचनसे जगत् बना दिया, तो वह शब्द कहासे निकला और किसने सुना ? क्या ईश्वरके जवान थी और सूक्ष्म परमाणुओंके कान थे कि उसने कहा
और उन्होंने सुना ? ऐसा होना विलकुल असंभव और प्रत्यक्षविरुद्ध है। फिर सूक्ष्म परमाणुओंमें ऐसी शक्ति कैसे हो गई । यदि यह कहो कि प्रलयका समय पूर्ण होनेपर सव चीज़े अपने अपने स्वभावानुसार बन गई । सो प्रथम तो ऐसा स्वभाव होन ही असम्भव है, यदि मान भी लिया जावे तो फिर ईश्वरने क्या किया ? अपने आप ही हो गया । ईश्वरको जो प्रलयके वाद जगत्का बनानेवाला मानते हैं सो अव्वल तो ऐसा प्रलय ही नहीं हो सकता कि जब संसारकी सब चीजें सूक्ष्म परमाणुओंकी हालतमें हो जाये और इतने ही दिनों तक यह हालत रहे जितने दिनों तक सृष्टि रही। दूसरे अगर हो भी तो विना वर्षों लगाये, कल