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(७ ), वगैरह होने चाहिये और इनके होनेसे ईश्वरमें और ससारी जीवोंमें कुछ भी भेद न रहा और उन्होंके समान वह रागद्वेषयुक्त क्रियाचर्यावाला ठहरा, अतएव ईश्वर जगत्कर्ता नही है। . .
इसके पश्चात् यह प्रश्न उठता है कि सृष्टि वनानेसे पहिले क्या हालत थी ? यदि कुछ भी नहीं थी तो यह जगत् कहासे बना-दिया और कहा बना दिया ? पशु, पक्षी, स्त्री, पुरुप, सूरज, चाद, नदी, पहाड वगैरह चीजें कहांसे आई और किस - तरह आई और जहा इनको , रक्खा वहा पर पहिले क्या था ? क्या शून्य था ? यदि दयानन्दियोंकी तरह यह कहो कि प्रलयके वाद ईश्वर जगत्को जो प्रलयकालमे सूक्ष्म परमाणुओंकी हालतमें रहता है,, स्थूल रूपमें बनाता है, तो यह बतलाओ कि वे परमाणु किस- हालतमें थे और कहां थे ? यदि पृथ्वीपर थे तो ये परमाणु और पृथ्वी किसने बनाये और कब बनाये ? प्रलयकालमें ये परमाणु एकसे ही थे या छोटे बहे ? सब समान गुणोंके धारी; थे या, भिन्न २ १ जड या चैतन्य ? या कुछ जडरूप और कुछ चैतन्यरूप ? चैतन्यका जडसे सम्बन्ध या या नहीं ? चैतन्य सुखकी हालतमें था या दुखकी ? सब जीवोंकी दशा एकसी थी, या पृथक् २ १ उनमे और मुक्त जीवोंमे क्या भेट, था ? फिर प्रलयके वाढ ईश्वरने उनको कैसी शक्ल दी