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था कि ये लोग नियस निद्य कर्म करेंगे, अतएव इनको स्वतंत्रता न देनी चाहिये और इनको पैदा करके बुर रास्ते पर न चलाना चाहिये। यदि इस अभिप्रायसे पैदा किया कि ये लोग मेरी भक्ति करेगे, स्तुति करेंगे, तो यह उद्देश्य भी ईश्वरपनमें धब्बा लगाता है। उसको स्तुति और भक्तिकी क्या परवा । और फिर उनसे जिनको उसने स्वयं बनाया। मान लो यही इच्छा थी, तो यह तो पूर्ण नहीं हुई। नित्य देखने में आता है कि वहुतसे लोग ईश्वरकी स्तुति तो क्या उल्टा उसको गालिया देते हैं और उसका नाम तक भी नही लते। क्या ईश्वर सर्वज्ञ न था ? क्या उसको ज्ञान न था ? यदि था तो ऐसा क्यों किया? यदि अपनी भक्तिकी तो उसे चाह न थी किन्तु वैसे ही सृष्टि बना दी कि देखे लोग क्या करते हैं, तो इससे तो कोई लाभ न निकला । यह तो तमाशा देखना हुआ। लोग तकलीफ उठावें, पीडा सहें, भूखसे मरे और ईश्वर चुपचाप तमाशा देखे । यह बिलकुल झूठ है और इससे जाहिर है कि ईश्वरने दुनियाको नहीं बनाया । उसको बनानेवाला माननेमें वह रागी द्वेपी ठहरता है और उसके सर्वज्ञपनेमें दूषण लगता है। ___ अस्तु, इसे भी जाने दीजिये । यह बतलाइये कि ईश्वरको यह इच्छा उसी समय क्यों हुई जब उसने यह सृष्टि बनाई' ससे पहले या पीछे क्यों न हुई ? इन प्रश्नोंका कुछ भी